चाची को जबरदस्ती चोदा

काफी दिन के बाद मुंबई से अपने गांव पालीगंज गया था। गांव में मेरे माँ बाप व चाचा चाची रहते थे। गांव में 7 दिन खूब मौज मस्ती की। वापस आते समय मैंने अपनी माँ बाबू जी को कहा कि कुछ दिन मुम्बई चलो। माँ बाबू जी तो तैयार नहीं हुए लेकिन चाचा चाची तैयार हो गए। लेकिन तभी एक समस्या ये हो गयी कि तत्काल में मेरी और चाची की टिकट ही कन्फर्म हो सकी और चाचा की नहीं। इसलिए मैंने चाची को अपने साथ ले जाने का फैसला किया और चाचा का 8 दिन बाद का टिकट कटवा दिया। चाची मेरे साथ ख़ुशी ख़ुशी मुम्बई चली आई।
मेरी चाची बड़ी ही सीधी साधी थी। देखने में वो काफी हसीन थी। उम्र 37 साल की होती होगी उनकी।
खैर, जब मैंने उनको मुम्बई लाया तो अपने कमरे में ले गया। अकेला रहता था इसलिए एक ही सिंगल बेड था।
मैंने तो सोचा था कि माँ बाबूजी आएंगे तो बगल का खाली कमरा ले लूंगा।
लेकिन अब सिर्फ चाची को अकेले दूसरे कमरे में कैसे रखता?
इसलिए चाची को अपने बिस्तर पर ही सुलाने का फैसला कर लिया।
जब रात को सोने की बारी आई तो मैंने थोड़ी चढ़ा ली।
हम दोनों एक ही बिस्तर पर सो गए।
लेकिन रात को अँधेरे में मेरे हाथ चाची की स्तन पर चले गए। मैं उनके स्तन पर हाथ फेरने लगा। फिर धीरे धीरे दबाने लगा। चाची ने थोड़ा प्रतिरोध किया लेकिन मैंने दबाना चालू रखा।
फिर मैं अचानक उनके ऊपर चढ़ गया और उनके मुंह पर अपना मुंह रख दिया और उनके ओठ चूसने लगा। वो शायद इसे ठीक नहीं समझ रही थी इसलिए साथ नहीं दे रही थी।
मैंने उनके बदन को सहलाना चालु रखा। फिर उनकी साड़ी को उठा कर उनके चूत पर हाथ फेरने लगा। वो अपने हाथ से मेरे हाथ को अपने चूत पर से हटाने का असफल प्रयास कर रही थी। लेकिन मेरी पकड़ मजबूत थी।
मैंने उनकी चूत में अपनी बीच वाली ऊँगली डाल दिया। उनकी चूत गीली थी। चूत थोड़ी ढीली ढाली व फैली हुई थी।
अब मेरा लंड उफान पर था।
मैंने एक झटके में अपने निकर को नीचे किया और चाची को कस कर पकड़ा और अपने लंड को पकड़ कर उसके चूत में डाल दिया।वो मेरे लंड को अपने चूत से निकालने का प्रयास कर रही थी। लेकिन मैंने उनकी दोनों बाहों को पकड़ा और उनके हाथ को ऊपर की तरफ कर दिया। अब मैं उन्हें आसानी से चोद रहा था। चाची कसमसाती रही।लेकिन जब 20 -25 धक्के मार दिए तो उनका प्रतिरोध कुछ कम हो गया। अब मैंने उनके हाथ छोड़ कर उनके फिर  दोनों जांघो को बाहर की तरफ फैला दिया। अब मुझे उसे चोदने में ज्यादा आसानी हो गयी। मैं उनके कमर को थोड़ा ऊपर किया और अपने लंड का पूरा भार उनके चूत में डाल दिया।
फिर उनको जम कर चोदा। शायद अब वो समझ चुकी थी कि प्रतिरोध करने से कोई फायदा नहीं। और शायद ये भी सोच ली कि चलो बेचारे को थोड़े मजे ले लेने दो, क्या नुकसान हो जायेगा।
इसलिए वो शांत हो गईं और आराम से चुदवाने लगी। उनकी चूत भी गीली हो गयी थी। मेरा लंड उन्हें मजा दे रहा था क्यों कि हर धक्के पर सिसकारी दे रही थी। 10 मिनट की जोरदार चुदाई के बाद मेरे लंड में चाची के चूत में ही पानी छोड़ दिया। मैं उनके बदन पर से हट कर बिस्तर पर निढाल हो गया। चाची भी उसी तरह अस्त व्यस्त लेटी रही।
अब मुझे अपनी भूल पर पछतावा होने लगा।
मैंने चाची को बोला - चाची मुझे होश ही नहीं रहा। पता नहीं कैसे हो गया। प्लीज आप बुरा मत मानिए। अब ऐसा नहीं करूँगा।
चाची ने कहा - ठीक है। जो हो गया सो हो गया। अब किसी को कहना मत। नहीं तो मैं कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी।
मैंने कहा - ठीक है चाची, अब सो जाओ।
कह कर मैं सो गया।
थोड़ी देर बाद अहसास हुआ कि कोई मेरे लंड को पकड़ कर दबा रहा है। आँख खुली तो देखा कि चाची मेरा लंड दबा रही है।
मैंने कहा - ये क्या कर रही हैं आप चाची ?
चाची ने कहा - एक बार फिर से चोदो ना। मुझे भी मजा आ रहा था।
इस बार मैंने चाची के पूरे कपड़े खोल दिए ।
चाची ने मुझसे अपने दोनों चूची चूसवाई। मेरे होठों को भी अच्छे से किस किया। और फिर खुद ही मेरे लंड को अपने चूत में डाल दी।
इस बार जबरदस्त चुदाई हुई। मेरे दोनों हाथ उसके चूची पर थे और नीचे से धक्का मार रहा था। करीब 15 मिनट तक धक्का मारने के बाद भी ना  मेरा पानी निकला ना चाची का।
तब चाची ने मुझे लिटा दिया और खुद मेरे लंड पर अपनी चूत डाल बैठ गयी। और मेरे सीने पर अपना हाथ रख मेरे लंड पर उछलने लगी।
कसम से चाची ने तो मुझे जन्नत की सैर करवा दिया।
थोड़ी ही देर में चाची के चूत से गर्म लावा निकला जो मेरे लंड पर लगने से अहसास हो गया। चाची तो निढाल हो मेरे सीने पर अपने स्तन रगड़ने लगी। तब मैंने नीचे से ही चाची के चूत में धक्का मारना शुरू किया। 25 - 30 धक्के के बाद ही मेरे लंड ने भी लावा उगल दिया।
मैंने जोर से चाची को अपनी दोनों बाहों में समेटा और अपने सीने की तरफ दबाने लगा।
हम दोनों की साँसे तेज चल रही थी।
थोड़ी देर बाद चाची मेरे शरीर पर से हट गई।
अगले 7 रोज तक चाची और मेरे बीच जिस्मानी रिश्ते कायम रहे।
7वें रोज चाचा जी आ गए। फिर 3 दिन वो दोनों एक अलग कमरे में रहे।मुम्बई दर्शन के बाद चाचा चाची वापस पालीगंज लौट गए।

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